हमर माटी के इस विशेष अंश में आज बात होगी छेरछेरा पर्व की, जो हमारे प्रदेश छत्तीसगढ़ के प्रमुख त्योहारों में से एक है। छेरछेरा त्यौहार हर वर्ष पौष मास के पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस पर्व को मनाने का अनोखा तरीका इसे अलग ही लोकप्रिय बनाता है जहां छेरछेरा त्योहार के दिन सुबह से ही हर्षो उल्लास दिखाई देने लगता है और यहां के मूल निवासी लोगों की बात की जाए तो उनका यह भी कहना है कि उनके फसल मुख्यतः “धान” की कटाई के बाद यह त्यौहार उनके लिए ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है और अपनी फसल से के द्वारा जो आर्थिक समृद्धि की प्राप्ति होती है उसे भी इसी त्यौहार के दिन अपने ईस्ट को समर्पित किया जाता है।
बताते चलें कि छेरछेरा त्यौहार के दिन सुबह से बच्चों में खुशी की लहर दौड़ जाती है क्योंकि उन्हें अपने आसपास घूम कर हर एक घर से छेरछेरा मांगने का मौका मिलता है मांगने से मतलब है मोहल्ले के बच्चे ग्रुप बना बना कर अपने आसपास के क्षेत्र में एक मुट्ठी धन मांगते हैं इसके साथ ही घूम-घूम कर गाना गाते हुए विशेष नारा लगाते हैं छेरछेरा पर्व में विशेष नारा होता है “छेर छेरा कोठी के धान ला हेर हेरा”!
छेरछेरा मांगने वाले इन बच्चों को बड़े प्यार से एक मुट्ठी धान दिया जाता है तथा अपनी इच्छा अनुसार उनको स्नेह पूर्वक कुछ पैसे भी दिए जाते हैं जो लोग किसान वर्ग के नहीं होते वह लोग मुख्यतः पैसे ही देते हैं।
इस त्यौहार में कुछ विशेष प्रकार के व्यंजन भी बनाए जाते हैं जो की हर क्षेत्र विशेष में अलग-अलग होता है कहीं पर पूरी रोटी मुख्य रूप से बनाया जाता है कहीं पर उड़द दाल के बड़े, कहीं मालपुआ तो कहीं सुहारी रोटी बनाई जाती है।
हमारे छत्तीसगढ़ में वैसे तो हर त्यौहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है तथा पारंपरिक रूप से बहुत ही शानदार आयोजन किया जाता है ठीक उसी तरह छेरछेरा पर्व भी हमारे राज्य की सांस्कृतिक धरोहर है तथा हमें इसे आगे भी पूरे पारंपरिक रूप से बढ़ाते रहना है।